geet vrindavan
‘चलो, सब चले द्वारिका मिलकर’
बोला एक गोप वृन्दावन में जा-जाकर घर-घर
किसका मान! आन अब कैसी
अब तो दशा हुई है वैसी
जल में थी गजेन्द्र की जैसी
आये प्राण अधर पर
चलो सभी आगे कर गायें
नन्द-यशोदा दायें-बायें
राधा को भी आज मनायें
निकले घर के बाहर
‘चलो, सब चले द्वारिका मिलकर’
बोला एक गोप वृन्दावन में जा-जाकर घर-घर