geet vrindavan

‘रहिए चलकर वृंदावन में
कहा रुक्मिणी ने माधव से, मत दुख पायें मन में

“राधा से मैत्री कर लूँगी
नहीं मिलन में बाधा दूँगी
दूर-दूर से बस देखूँगी

रास रचे जब वन में

“जब अधिकार न प्रिय के मन पर
क्या होगा रानी कहलाकर!
प्रतिपल बना रहे यदि अंतर

सुख क्या राजभवन में!

‘राधा के ही नाथ कहायें
विनय यही मुझको न भुलायें
हाथ धरे की लाज निभायें

लेकर चरण-शरण में!

‘रहिए चलकर वृंदावन में
कहा रुक्मिणी ने माधव से मत दुख पायें मन में