geet vrindavan
अब तो छोड़ नहीं जायेंगे!
अबकी बिछुड़ी फिर न मिलूंगी लाख यहाँ आयेंगे
टूट गिरी जो कलिका भू पर
फिर कब उसको पाता तरुवर!
लहर फिरी जो तट से मिलकर
उसको लौटायेंगे
‘भले द्वारकाधीश कहायें
इस दुखिया को छोड़ न जायें
नाथ! साथ वृन्दावन आयें
मुझे तभी पायेंगे
‘प्रिया आपकी तभी कहाऊँ
बनकर वधु द्वारिका आऊँ
देर हुई आज्ञा दें जाऊँ
संगी अकुलायेंगे
अब तो छोड़ नहीं जायेंगे!
अबकी बिछुड़ी फिर न मिलूंगी लाख यहाँ आयेंगे