ghazal ganga aur uski lahren

1215
बँधकर रही न डाल से ख़ुशबू गुलाब की
कोयल न कूकती कभी सुर और ताल में
1216
बचके निकले गुलाब से तो आप
फिर भी आँखों में यह ललाई क्यों ?
1217
बचके निकले थे तुम तो, गुलाब !
याद काँटे चुभोके रही
1218
बड़ी हसरतों से आयी मुझे नींद उनके दर पर
मेरी ज़िंदगी ठहर जा, इसे तोड़ने के पहले
1219
बड़ी हसीन है सपनों की रात, चुप भी रहो
ऐसे में भला जाने की बात ! चुप भी रहो
1220
बड़े बेरहम हो, बड़े बेवफ़ा हो
करें क्या जो मरने को जी चाहता है !
1221
बड़े भोले हैं, बड़े दूध के धोये हैं आज
पीके जब प्यार में बहके थे क़दम, भूल गये !
1222
बड़े ही शौक़ से उसको गले लगा लें हम
नज़र से आपकी, बिजली कभी गिरे तो सही
1223
बन गयी पत्थर की सब शहज़ादियाँ
आँख भर लाने की आदत रह गयी
1224
बनके ख़ुशबू बाग़ की हद से निकल आये गुलाब
लाख अब कोई मिटाये, मिट सकेंगे हम नहीं
1225
बनके दीवाना न यों महफ़िल में आना चाहिए
कुछ तो लेकिन उनसे मिलने का बहाना चाहिए
1226
बनी तो तुमसे किसी और से बने न बने
तुम्हारा है जो किसी और का हुआ न हुआ
1227
बस कि परदे से लगके बैठे हैं
कभी दम भर तो सामने आयें
1228
बस कि मेहमान सुबह-शाम के हैं
हम मुसाफ़िर सराय-आम के हैं
1229
बस नज़र का तेरी अंदाज़ बदल जाता है
सुर तो रहते हैं वही, साज़ बदल जाता है
1230
बसी है दिल में तो उनके गुलाब की ख़ुशबू
गले में और भी फूलों का हार हो, तो हो
1231
बहकी हुई है चाल, कोई देखता न हो
ऐसा हमारा हाल, कोई देखता न हो
1232
बहुत कुछ कहके भी उनसे न कह पाया था प्यार अपना
तपिश सीने की बस आँखों में लानी याद आती है
1233
बहुत था प्यार भी इतना कि पास बैठे रहे
हमारी बात को सुन-सुनके मुस्कुराया किये
1234
बहुत शोर था उनकी दरियादिली का
हमें देखकर यों किनारे न होते !
1235
बहुत से ऐसे भी जीवन में आ चुके हैं मोड़
जब उनके नाम को होंठों पे लाके छोड़ दिया
1236
बहुत से वक़्त ऐसे भी कटे हैं जबकि घबराकर
ये सोचा मैंने मन में— ‘मैं नहीं होता तो क्या होता !’
1237
बहुत हमने खोया, बहुत हमने पाया
जो सच पूछिए, फिर भी जीना न आया
1238
बहुत हमने चाहा कि दिल भूल जाये
मगर तुम भुलाने में भी याद आये
1239
बहुत ही गहरे में मिलता है प्यार का मोती
हम और डूबते जाते तो कोई दूर न था
1240
बहुत ही सीधे हैं, सादे हैं आप, और आगे
कहेंगे हम तो नहीं, दूसरा कहे तो कहे
1241
बहुत हुआ यही एहसान, हमको भूले नहीं
वे बेरुख़ी से ही उठकर गले मिले तो सही !
1242
बहुत है शोर ज़माने में आपका, लेकिन
कभी तो देख लें सूरत उठाके परदा हम
1243
बाग़ तो झूम रहा है तेरी ख़ुशबू से, गुलाब !
बाग़वाँ ने अगर मानी कि न मानी, क्या है !
1244
बाग़ भर में उड़ रही ख़ुशबू, तो क्या !
फूल को हाथों में आना चाहिए
1245
बाग़ में चारों तरफ़ मौत का सन्नाटा है
गंध पहले-सी गुलाब तेरी कहाँ पायें हम !
1246
बाग़ में यों तो चटकते हैं हज़ारों ही गुलाब
एक क्यों खिल नहीं पाता है, कोई बात भी हो !
1247
बाग़ से आये तो निकलके गुलाब
राह आगे की पर नहीं मिलती
1248
बात ऐसी न सुनी थी किसी दीवाने में
ख़ुद को रो-रोके पुकारा किया वीराने में
1249
बात ऐसे तो बहुत होके रही अपनी जगह
हमने पायी है उसी दिल में सही अपनी जगह
1250
बात क्या राह में बनेगी भला !
घर पे आओ तो कोई बात बने
1251
बात जो कहने की थी, होंठों पे लाकर रह गये
आपकी महफ़िल में हम ख़ामोश अक्सर रह गये
1252
बात तो कुछ न हो सकी उनसे
हिचकियाँ बढ़ गयीं दबाव के साथ
1253
बात होनी थी होके रही
हमको दुनिया से खोके रही
1254
बातें तो हैं कहने की हज़ारों, कह भी रहे हैं, कह भी न पाते
काम की बातें फिर कर लेंगे, आज तो हों बेकाम की बातें
1255
बातें बना-बनाके फिराते हैं मुँह सभी
सच है, भरम किसीको भी अपना न दीजिए
1256
बातें हम अपने प्यार की, उनसे छिपाके कह गये
देखिए बात क्या बने, कुछ तो बनाके कह गये
1257
बिके तो राहों में ज़िंदगी की, न भूल पाये हैं पर तुझे हम
ख़ुद अपनी उस ख़ुदकुशी का मातम, छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
1258
बिखर चली हैं पँखुरियाँ गुलाब की सब ओर
कोई तो आके सँभालो, बहुत उदास हूँ मैं
1259
बिखरती गयी रंग की फुलझड़ी-सी
ये किसने बहारों का घूँघट उठाया !
1260
बिछुड़े हुए राही मिल न सके, आख़िर हम भीड़ में खो ही गये
दिल उनको पुकारा करता है, हम दिल को पुकारा करते हैं
1261
बिजली कभी-कभी जो चमक ही गयी, तो क्या !
ग़म की घटा सियाह मेरे साथ रही है
1262
बिना अब आपके जीना तो साँसें जोड़ना ठहरा
तड़पना, आह भरना, चीखना, सर फोड़ना ठहरा
1263
बिना कहे भी तो आँखों ने कह दिया सब कुछ
सदा से प्यार की गाथा इसी ज़बान में है
1264
बिस्तर पे सिकंदर को देखा मरते तो कोई यों बोल उठा —
‘दुनिया को हरानेवाले भी तक़दीर से हारा करते हैं’
1265
बुझा-बुझा, सर्द-सर्द-सा कुछ, है अब भी सीने में दर्द-सा कुछ
पड़े हों मुँह ढँकके हम भले ही, मगर तबीयत भरी नहीं है
1266
बुरा कहें तो बुरे हैं, भला कहें तो भले
हम अक्स आपके दिल के ही, आईने में ढले
1267
बुलबुल को बाँध दे जो रगों से गुलाब की
ऐसा भी यहाँ कोई कलाकार तो रहे
1268
बुला लिया है उसे घर पे हमने आज, मगर
मना रहे हैं, नहीं आये और कुछ मत हो
1269
बेआस चलते-चलते, राही तो थकके सोया
मंज़िल का अब इशारा हो भी अगर, तो क्या है !
1270
बेकहे आये, चले भी बेकहे
ख़ूब था आना ! ये जाना ख़ूब है !
1271
बेकहे भी न रहा जाय, और क्या कहिए !
प्यार इसको न कहा जाय, और क्या कहिए !
1272
बेकार लिख गये हैं ख़त में हम उनको, इतना
लिखना था मुख़्तसर में—‘हैं फिर गुलाब फूले’
1273
बेझिझक, बेसाज़, बेमौसम के आ
ग़म की बारिश है तो आ, फिर जमके आ
1274
बेबसी उन झुकी निगाहों की
कुछ न कहकर भी कुछ बता ही गयी
1275
बेरुख़ी तो मेरे सरताज नहीं होती है
पर वो पहले-सी नज़र आज नहीं होती है
1276
बेसुधी में काटता चक्कर रहा फिर रात भर
अपने होंठों तक ये प्याला तुमने क्यों आने दिया !
1277
बेसुधी रुकने नहीं देती हमें
जब कोई मंज़िल नज़र आती भी है
1278
भरम ही मेरा कि जादू तेरी मुस्कान में है
हुक्म फाँसी का भी, जीने की दुआ कान में है
1279
भरा ग़म ही ग़म प्यार की बाँसुरी में
कभी सुर ख़ुशी का भी फूटे तो फूटे
1280
भरी सभा में सबोंसे नज़र चुराती हुई
कोई गुलाब की पँखुरी से मुझको मार गयी
1281
भला भले को, बुरे को बुरा समझते हैं
हम आदमी को ही लेकिन बड़ा समझते हैं
1282
भले ही कोई निगाहें चुरा रहा है, ‘गुलाब’ !
छिपा है प्यार भी पलकों की बेरुख़ी के तले
1283
भले ही चाँद-सितारों में ढूँढ़ हारी नज़र
कभी तो आयेगी सूरत मुझे तुम्हारी, नज़र
1284
भले ही तेज़ हो आँधी, बचाके रख लो इन्हें
न जल सकेंगे कभी फिर दिये, बुझाये हुए
1285
भले ही दामन छुड़ा रही अब फिराके मुँह बेवफ़ा जवानी
हसीन रंगों का हम वो मौसम, छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
1286
भले ही दिल न मिले, आँख चार होती रही
छुरी की धार कलेजे के पार होती रही
1287
भले ही दूर नज़र से सदा रहा हूँ मैं
महक तो आपकी साँसों की पा रहा हूँ मैं
1288
भले ही दो घड़ी के वास्ते प्याला मिला हमको
किसीने भूल से पर दे दिया हो, हो नहीं सकता
1289
भले ही प्यार ने हमको बना दिया था गुलाब
उन्होंने आँख का काँटा बनाके छोड़ दिया
1290
भले ही प्यार में आँसू न पोंछता हो कोई
गुलाब और भी चमका है इस नगीने से
1291
भले ही बाग़ में उनके न खिल सके हैं गुलाब
मिली हैं पर ये निगाहों में शोख़ियाँ कैसी !
1292
भले ही बाग़ में कोयल भी है, बहार भी है
नज़र की ओट में, हर फूल बेक़रार भी है
1293
भले ही राह में दिल की थे सैकड़ों तूफ़ान
मगर हम आपकी लौ को बचाके लाये हैं
1294
भले ही साँप यह रस्सी में आ रहा है नज़र
न बीन है, न सँपेरा, कहीं भी कोई नहीं
1295
भले ही हम न हों जब प्यार की शहनाइयाँ गूँजें
तुम्हारे दिल में कोई दूसरा हो, हो नहीं सकता
1296
भले ही हाथ से आँचल छुड़ाये जाते हैं
वे और भी मेरे दिल में समाये जाते हैं
1297
भाँवरें यों तो हज़ारों के साथ भरती रही
ज़िंदगी अब भी कुँआरी है, इसे कुछ न कहो
1298
भाती नहीं जो आपको ग़ज़लें ‘गुलाब’ की
उन पर न कान देना है अच्छा, न दीजिए
1299
भाती नहीं है प्यार की ख़ुशबू जिसे, गुलाब !
शायद कभी उसे भी तुम्हारी तलाश हो
1300
भाती नहीं हो जिसको पँखुरियाँ गुलाब की
उसको ग़ज़ल भी रास न आये, तो क्या करें !
1301
भाते न थे गुलाब उन्हें फूटी आँखों भी
मौसम का कुछ हुआ है असर, देख रहे हैं
1302
भुला पाता नहीं मैं पोंछना काजल पलक पर से
लटें आवारा उस रुख़ से हटानी, याद आती है
1303
भूलकर नाम न ले कोई वफ़ादारी का
अब तबीयत मेरी इस नाम से घबराती है
1304
भूल है अपना समझ लेना, ‘गुलाब’ !
रंग उन आँखों में, माना, ख़ूब है !
1305
भूलता ही नहीं कहना तेरा नम आँखों से–
‘अब तो रुक जाइए, बरसात हुई जाती है’
1306
भेंट उसने गुलाब की ले ली
घूँट जैसे शराब की ले ली
1307
भेद तेरा उसे कोयल न कह गयी हो, गुलाब !
आज बदली हुई चितवन भी कुछ बहार की थी
1308
भेद तो यह कभी खुलता कि दूसरा है कौन
ज़िंदगी ने कभी घूँघट को उतारा ही नहीं
1309
भोर होनी थी, होके रही
मेरे सपनों को खोके रही
1310
भौहों से, चितवनों से कुछ, आँखों से कुछ सुना दिया
फिर भी जो अनकहा था वह पलकें झुकाके कह गये