ghazal ganga aur uski lahren

1311
मजबूरियाँ हज़ार हो मिलने में प्यार को
हों जब निगाहें चार, कभी छिप नहीं सकता
1312
मजमा उठा-उठा है, झुकी आ रही है शाम
मेले से हम अब लौटके घर जायँ तो अच्छा
1313
मन के हैं द्वार-द्वार पर पहरे लगे हुए
उनको उन्हींसे छिपके चुराने चले हैं हम
1314
मन में बसी है और ही ख़ुशबू कोई, ‘गुलाब’
ऐसे तो बाग़ भर में नज़र डूब रही है
1315
मना हैं जिधर ये निगाहें उठाना
उधर पाँव धरने को जी चाहता है
1316
मर भी जायें तो जायें कहाँ !
यह भरम, और कुछ भी नहीं
1317
मरना देखके डर जाना क्या ! जीने के नाम से घबराना क्या !
प्यार ने हाल किया कुछ ऐसा, ये हैं सुबह और शाम की बातें
1318
मसलती हो पाँवों से दुनिया, गुलाब !
मगर अब हवाओं में छाये हैं हम
1319
महफ़िल में उनकी होश था उठने का भी किसे !
दुनिया हमींको आँख दिखाये तो क्या करें !
1320
माना कि आज रूप ने परदा उठा दिया
हम क्या करें, नज़र ही अगर उठ न पाये तो !
1321
माना, एक गुलाब यहाँ पर अपनी ख़ुशबू छोड़ गया है
वह लेकिन सपना था, उसको भूल ही जाना अच्छा होगा
1322
माना कि, गुलाब ! उन आँखों में रंगों का तेरे कुछ मोल नहीं
राहों में बिखर जा प्यार की तू, कुछ दिल का कहा भी मान तो ले
1323
माना कि यह ख़त हाथ में लेकर उसने इसे फिर फाड़ भी डाला
लौटनेवाले ! हमको बता दे, उसका कोई संदेश तो होगा !
1324
माना कि लोग पहले भी दुश्मन थे हमारे
दो-एक हों, सारा शहर ऐसा तो नहीं था
1325
माना कि हम गले से गले मिल रहे हैं आज
यादों में तड़पने का मज़ा और ही कुछ है
1326
माना, नहीं क़बूल था मिलना ‘गुलाब’ से
यह बात शहर भर को बताते हो, ये क्या है !
1327
मिल गयी क्या तेरी आँखों में झलक प्यार की थी !
आख़िरी वक़्त तड़प और ही बीमार की थी
1328
मिल न पाये कहीं जब गुलाब
उनकी आँखों में पाये गये
1329
मिल भी गये फिर आते-जाते, मिलके निगाहें फेर भी लो
गंध गुलाब की भूल न जाना, मेरे साथी, मेरे मीत !
1330
मिल ही जायेंगे फिर हम कहीं
राह भी है जहाँ चाह है
1331
मिलके आँखें हैं छलछलायी क्यों !
तीर पर नाव डगमगायी क्यों !
1332
मिलके नहीं बिछुड़ेंगे जहाँ हम, ऐसा भी कोई देश तो होगा !
हम न रहेंगे, तू न रहेगा, प्यार मगर यह शेष तो होगा !
1333
मिलता नहीं है आपसे तिनके का सहारा
दिल फँस गया भँवर में, नज़र डूब रही है
1334
मिलन की प्यास को इतना बढ़ाके छोड़ दिया
कृपा की डोर को छोटा बनाके छोड़ दिया
1335
मिलना न अब हमारा हो भी अगर, तो क्या है !
यह प्यार बेसहारा हो भी अगर, तो क्या है !
1336
मिलने की हर ख़ुशी में बिछुड़ने का ग़म हुआ
एहसान उनका ख़ूब हुआ फिर भी कम हुआ
1337
‘मिला दुनिया से क्या ?’ मत पूछ हमसे
तुझीमें, मौत ! अब आराम लेंगे
1338
मिला न कोई महक दिल की तौलनेवाला
गुलाब ! आपकी यों ही गुज़र गयी है रात
1339
मिला प्याले में जितना कुछ, बहुत है
इसे पी लो भी छलकाने के पहले
1340
मिली है एक ही जीवन में यह बहार की रात
कहीं न यह भी निकल जाये, और कुछ मत हो
1341
मिली है प्यार की ख़ुशबू तो हर तरफ़ से हमें
भले ही बीच में परदे पड़े हैं झीने से
1342
मिले तो यों कि कोई दूसरा सहा न गया
गये तो ऐसे कि जैसे कभी रहे ही नहीं
1343
मिले न हमको भले उनके प्यार की ख़ुशबू
नज़र से मिल ही लिया करते हैं गले से गले
1344
मिलेंगे हम जो पुकारेगा दुख में कोई, कभी
हरेक आँख के आँसू में है हमारा पता
1345
मिलेगा कुछ तो उजाला भटकनेवालों को
चिराग अपने लहू से जला रहा हूँ मैं
1346
मिलेगा चैन तो धरती की गोद में ही हमें
नज़र की दौड़ सितारों के पार हो तो हो
1347
मिलो कहीं तो निगाहों से पूछ भर लेना
ज़रा-सा होंठ ही थर्राये, और कुछ मत हो
1348
मिलो न चाहे उम्र भर, मगर हो दिल के हमसफ़र
जली न आग जो उधर, उठा कहाँ से यह धुआँ !
1349
मीर, ग़ालिब को छूना खेल नहीं
फिर भी करके प्रयास देखेंगे
1350
मुँह खोलके हमसे जो मिलते न बना होता
कुछ तुमने निगाहों से कह भी तो दिया होता !
1351
मुँह पे मलकर अबीर होली में
हाथ हरदम को धो लिया तुमने
1352
मुँह से कहते नहीं—‘गुलाब भी है’
पर उन आँखों में कुछ जवाब भी है
1353
मुक़ाम ऐसे भी आये है ज़िंदगी में कई
हम अपना समझे थे जिनको वही पराये हुए
1354
मुझको नस-नस के चटकने का हो रहा है गुमान
हुक्म तेरा है कि दम भर कहीं आराम न लूँ
1355
मुझसे मिला था रूप की चितवन को बाँकपन
दुनिया किसे ये रंग दिखायेगी मेरे बाद !
1356
मुझे डूबने से उबार लें, कभी यह तो उनसे न हो सका
मेरी भावना के कगार पर वे लहर उठाके चले गये
1357
मुझे देखते रहे जो बड़ी बेरुख़ी से पहले
मेरी हाल पर हैं रोते, वही अब सभी से पहले
1358
मुझे देखा जो, थोड़ा मुस्कुराये
दया इतनी भी उनकी कम नहीं है
1359
मुझे बख़्श दे कि अब मैं, न क़दम मिला सकूँगा
मुझे होश इस सफ़र में कभी है, कभी नहीं है
1360
मुझे भी अपना बना लो, बहुत उदास हूँ मैं
गले से आके लगा लो, बहुत उदास हूँ मैं
1361
मुझे यक़ीन है, जाकर भी मैं रहूँगा यहीं
मेरे हर लफ़्ज़ में धड़का करेगा दिल मेरा
1362
मुझे हँसके अब विदा दो, मेरी ज़िंदगी का ग़म क्या !
ये समझ लो आज दुलहन साजन के घर गयी है
1363
मुझे है फिर यहीं आना, हसीन कितना भी
अखाड़ा इंद्र की परियों का आसमान में है
1364
मुट्ठी में अब ये चाँद-सितारे हुए तो क्या !
मरने के बाद आप हमारे हुए तो क्या !
1365
मुद्दत हुई है आपसे आँखें मिले हुए
इन सर्द घाटियों में कोई गुल खिले हुए
1366
मुस्कान नहीं होंठों पर, आँखें भरी-भरी
सौ बार आइए, मगर ऐसे न आइए
1367
मुस्कुरा उठती थीं हमको देखकर
आज उन भौंहों में ख़म कुछ भी नहीं !
1368
मुस्कुराने की बस है आदत भर
अब इन आँखों में कोई ख़्वाब नहीं
1369
मुस्कुराने को अदा प्यार की समझे हैं हम
यह मगर आपकी आदत के सिवा कुछ भी नहीं
1370
मुसाफ़िर राह में यों तो हज़ारों साथ चलते हैं
कोई जब दिल को छू जाये, हमें भी याद कर लेना
1371
मुसाफ़िर ! लौटकर आने का फिर वादा तो करता जा
अगर कुछ और रुक जाने की ज़िद मानी नहीं जाती
1372
मेरा जीना प्यार का जीना, उनकी बातें काम की बातें
मेरा रोना प्यार का रोना, उनके लिये बेकाम की बातें
1373
मेरा हर लफ़्ज़ है मनका मेरी सुमरनी का
ज़िंदगी मेरी कसीदा ही तेरी शान में है
1374
मेरी आँखों में जब तक नमी है
तेरी महफ़िल तभी तक जमी है
1375
मेरी उम्मीद बचपना छोड़े
उनकी चाहत जवान हो भी तो !
1376
मेरी एक ज़िंदगी को, नहीं कम है यह वहम भी
कि कभी नज़र से तूने, मुझे अपना कह दिया है
1377
मेरी ग़ज़लों में ढूँढ़ लेना मुझे
नहीं कोई निशान हो भी तो
1378
मेरी चाह उस नज़र में कभी है, कभी नहीं है
ये तो चाँदनी है घर में, कभी है, कभी नहीं है
1379
मेरी चुप्पी भी उनको भा ही गयी
यह उदासी भी रंग ला ही गयी
1380
मेरी ज़िंदगी का निचोड़ था, कोई ऐसी-वैसी कथा न थी
वही ज़िंदगी जिसे प्यार से कभी तुम सजाके चले गये
1381
मेरी ज़िंदगी है बुझी-बुझी, मेरे दिल का साज़ उदास है
कभी इसको ऐसी खनक तो दे, तेरे घुँघरुओं पे मचल सके
1382
मेरी शायरी नहीं यह मेरे दिल का आईना है
कभी ख़ुद को इसमें पाकर, उन्हें मुझसे प्यार होता !
1383
मेरे प्यार की वजह से ये हुई है रंगसाजी
मेरी हर नज़र से तेरी रंगत निखर गयी है
1384
मेरे शेरों में ज़िंदगी है मेरी
कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं
1385
मेहँदी लगी हुई है उमंगों के पाँव में
सपने में भी तो आपसे आया न जायगा
1386
मेहराब थे फूलों के वे औरों के वास्ते
दम भर किसीके हम भी सहारे हुए तो क्या !
1387
मैं किसी और की नज़रों से देख लूँगा तुम्हें
फूल जब होंगे पराये, मेरे जाने के बाद
1388
मैं जलाता हूँ दीप आँधी में
छाँह आँचल की एक क्षण कर लो
1389
मैं ज़िंदगी को रख दूँ छिपाकर कि मेरे बाद
सुनता हूँ, उन्हें इसकी ज़रूरत भी हुई है
1390
मैं तेरे प्यार के क़ाबिल तो नहीं था, लेकिन
कुछ तेरे दिल में धड़कता हुआ लगा है मुझे
1391
मैं नहीं था फिर भी मुझको तेरा दिल पुकारता था
मेरा प्यार जी रहा था मेरी ज़िंदगी से पहले
1392
मैं सुनाता तो हूँ, ऐ दिल ! उन्हें यह प्यार की तान
पर सुरों का वही अंदाज़, है मुश्किल, बैठे
1393
मैं ही शर्मिन्दा हुआ दरियादिली से उसकी
देनेवाले के तो मुँह पर न कभी ‘ना’ आया
1394
मोतियों की कमी नहीं थी वहाँ
हमने दामन बिछा दिया होता !
1395
मोतियों से भी सजा लीजिए पलकों को कभी
रंग चमकेगा नहीं आईना चमकाने से
1396
मोल कुछ भी न मोतियों का जहाँ
आँसुओं ने हँसी करायी क्यों !
1397
मौत आँखें दिखाती रही
ज़िंदगी मुस्कुराती रही
1398
मौत का डर प्यार में क्यों हो हमें !
ज़िंदगी मरने से कम कुछ भी नहीं
1399
मौत ! बस इंतज़ार था तेरा
अब किसीका न इंतज़ार है आज
1400
मौसम हज़ार रंग बदलता रहे, गुलाब !
वह तुझको भुलादे, कभी ऐसा नहीं होगा
1401
मंज़िल भले ही गर्द से पाँवों की छिप गयी
मंज़िल का एतबार कभी छिप नहीं सकता
1402
मंज़िल हज़ारों बार बगल से निकल गयी
जाने ये कैसी राह मेरे साथ रही है
1403
मंज़िल हरेक क़दम पे है इस दिल की राह में
बेगानगी का परदा उठाने की देर है
1404
मंज़िल हो आख़िरी यही, यह हो नहीं सकता
आगे गयी है राह इस आरामगाह से
1405
मंत्र तो बस है ढाई अक्षर का
जिसपे चाहो वशीकरण कर लो