ghazal ganga aur uski lahren
1406
यह ज़िंदगी तो कट गयी काँटों की डाल में
रखते हो अब गुलाब को सोने के थाल में !
1407
यह ज़िंदगी है प्यार की मंज़िल का एक पड़ाव
हाँ, यह ज़रूर है कि तड़पना है यहीं तक
1408
यह तो अच्छा है कि बिस्तर लग गया है बाग़ में
हम कहाँ ये फूल पाते घर सजाने के लिये !
1409
यह तो आदत है कि जो आह किये जाता हूँ
दर्द होता था जहाँ, अब तो वह दिल ही न रहा
1410
यह तो कहिए कि नज़र क्यों है खोयी-खोयी हुई !
भेद क्या हमसे छिपाया है ! आप चुप क्यों हैं !
1411
यह तो किस मुँह से कहें ‘आप हमारे हो जायँ’
पर हमें अपना बनाने की चाह है कि नहीं !
1412
यह तो क़िस्मत न हमारी थी, मिले होते गुलाब
हमने काँटों से ही लेकिन ये घर सँवार लिया
1413
यह तो क़िस्मत न हुई, खुलके सामना हो कभी
पर इधर आपकी तिरछी निगाह है कि नहीं !
1414
यह तो बतला कि खिलाये हैं भला क्यों ये गुलाब
है अगर ज़िद ये तेरी, इनसे कोई काम न लूँ !
1415
यह तो बतलाओ कि पहचानेंगे कैसे हम तुम्हें
लौटकर यह कारवाँ फिर भी अगर आने को है !
1416
यह तो बतलाओ कि हम कैसे फिर मिलेंगे यहाँ
तीर पर लौटती लहरों की चिन्हानी क्या है !
1417
यह तो वेला है, ढलती रही
उम्र भर किसकी चलती रही !
1418
यह न सोचा, किसीपे क्या गुज़री
दिल लगाया था शौक़िया तुमने
1419
यह प्यार दग़ा दे, कभी ऐसा नहीं होगा
दिल तुझको भुला दे कभी ऐसा नहीं होगा
1420
यह बेबसी की रात, ये बेचैनियाँ, ये ग़म
यह प्यार की जलन कहाँ जायेगी मेरे बाद !
1421
यह भी ताक़त न रही, चार क़दम उठके चलूँ
हाय ! कब उनकी गली का पता लगा है मुझे !
1422
यह भी, गुलाब ! खिलने में कोई खिलना !
मिल न पायी थी निगाहें भी अभी, सरके
1423
यह समझना कि मिले थे न कभी हम दोनों
रंग आँखों में ये छाये मेरे जाने के बाद
1424
यह साज़ बेसुरा भी ग़नीमत है, दोस्तो !
कल लाख पुकारे कोई, बोलेंगे हम नहीं
1425
यह सितारों से भरी रात हमारी कब थी !
आपके प्यार की सौग़ात हमारी कब थी !
1426
यहाँ गुलाब की रंगत का मोल कुछ भी नहीं
कलेजा चीरके काँटे पे दिखाना होगा
1427
यहाँ हर तरफ़ है धुआँ-धुआँ, रहें हम तो कैसे रहें यहाँ !
थीं हसीन जिनसे ये बस्तियाँ, वे गुलाब आज किधर गये !
1428
यही मुश्किलें हैं देतीं एहसास ज़िंदगी का
मुझे ग़म भी थोड़ा दे दे, मेरी हर ख़ुशी से पहले
1429
यही है ठीक, हमें आपने देखा ही नहीं
जगे हुए को जगाने की बात कौन करे !
1430
यहीं छोड़ दें याद बीते दिनों की
न तुम उनको देखो, न हम देखते हैं
1431
या जीतके उसको अपना बना या हारके बन जा तू उसका
हर हाल में तेरी जीत ही है, यह प्यार की बाज़ी ठान तो ले
1432
या तो दुनिया में बनाया नहीं होता हमको
या बनाकर न कभी ऐसे मिटाया होता !
1433
याद आती गुलाब की न उसे
और ही रंग में बहार है आज
1434
याद कर भी तो लो, दोस्तो !
हम भी साथी सफ़र के रहे
1435
याद कर लेंगे आपकी बातें
मन को जब भी उदास देखेंगे
1436
याद करते गुलाब को जो आप
झुकके काँटों ने राह दी होती
1437
याद मरने पे ही किया तुमने
हमको ऐसा भुला दिया तुमने !
1438
यादें ही ग़नीमत हैं इन प्यार की राहों में
बिछुड़े हुए साथी से मिलना न दुबारा है
1439
यादों के इस सफ़र में, हैं फिर गुलाब फूले
फिर बेकली है सर में, हैं फिर गुलाब फूले
1440
यादों के समंदर में नज़र डूब रही है
फिर प्यार की लहर में नज़र डूब रही है
1441
यादों पे कल हमारी चढ़ायेंगे फूल वे
उनकी बला से जाये अगर जान जाये तो
1442
ये क्या कम है, तेरी चर्चा शहर में
मेरी दीवानगी से बढ़ गयी है !
1443
ये क्या हुआ कि सुबह उनकी एक झलक न मिली
गले से आके जो लगते रहे हैं सारी रात !
1444
ये किस बहार की मंज़िल पे रुक गये हैं क़दम !
नज़र को आगे इशारा नहीं है आने का
1445
ये किस मंज़िल पे ले आयी है तू, ऐ ज़िंदगी ! मुझको
कि अब सूरत भी मेरी, मुझसे पहचानी नहीं जाती !
1446
ये किसकी याद ने रातों उन्हें बेसुध बनाया है !
तड़पकर रह गयीं शीशे में ये अँगड़ाइयाँ किसकी !
1447
ये कैसा खेल है आँखों की ओट होता रहे !
कभी तो परदा हटाओ कि हम भी देख सकें
1448
ये कैसी बस्ती है जिसकी हद में, गये हैं उठ-उठके लोग सारे !
सभी को मिट्टी के ये घरौंदे लुभा रहे थे, पता नहीं था
1449
ये कौन रात तड़पता रहा है काँटों पर !
निशान फूल की राहों में कोई और भी है
1450
ये घुटा-घुटा-सा मौसम, ये रुकी-रुकी हवायें
मेरे पास बैठ जाओ, मुझे नींद आ रही है
1451
ये तड़पती चितवनें, ये धड़कनें दिल की उदास
कोई समझे या नहीं समझे, मगर समझे हैं हम
1452
ये नज़ारे फिर कहाँ ! यह साँझ, ये रंगीनियाँ !
नाव, यह माना कि फिर इस घाट पर आने को है
1453
ये प्यार के वादे क्या सुनिए ! यह दिल की कहानी क्या कहिए !
कहना है हरेक तड़पन से जिसे, वह बात ज़बानी क्या कहिए !
1454
ये प्यारभरी रातें, ये दिल कहाँ मिलेंगे !
यह ज़िंदगी दोबारा हो भी अगर तो क्या है !
1455
ये बाज़ी कोई और ही खेलता है
महज़ चाल हमसे चलायी गयी है
1456
ये भी बहारें, ख़ूब कहीं
फूल खिले हैं, तुम ही नहीं
1457
ये माना कि भूले नहीं तुम हमें
मगर लोग कुछ अन्यथा कह गये
1458
ये माना, ज़िंदगी फिर भी मिलेगी
नहीं हम ज़िंदगी का नाम लेंगे
1459
ये माना, तू ही परदे से इशारे मुझको करता है
बिना देखे मगर दिल की परेशानी नहीं जाती
1460
ये माना हमने, झुका सर न उनके चरणों तक
जो वे भी आँख उठाते तो कोई दूर न था
1461
ये वो मौसम है जिसके आने पर
लोग क्या-क्या न कर गुज़रते हैं !
1462
ये शोख़ियाँ, ये अदायें, कहाँ थीं दिन के वक़्त !
कुछ और आप पर जादू-सा कर गयी है रात
1463
ये सच है, सुर में सभी के मिलाया सुर हमने
मगर सितार भी मन का बचाके रक्खा है
1464
ये सवाल है मेरे प्यार का, ये जवाब है तेरे रूप का
तुझे क्या बताऊँ मैं, दिलरुबा ! जो लिखा है दिल की किताब में !
1465
ये सितार बज उठे यों तेरे तोड़ने के पहले
कि तड़प ले कुछ तो दुनिया मेरे छोड़ने के पहले
1466
ये हमने माना कि जीवन है एक अँधेरी रात
कभी तो वे भी चले आयें रोशनी के लिये
1467
ये हमने माना कि दुनिया न रही वह दुनिया
बचे हैं दोस्त अभी पाँच-सात, चुप भी रहो
1468
ये हमने माना कि हरदम चलेगा दौर यही
मिलेगा वह कहाँ प्याला जो गिरके टूट गया !
1469
ये हसीन बेकली क्यों सीने में भर गयी है !
मेरे दिल के पास आकर वो नज़र ठहर गयी है
1470
यों उड़ा है नशा जवानी का
जैसे बालू पे हर्फ़ पानी का
1471
यों ख़यालों में उभरता है एक हसीन-सा नाम
जैसे मिल जाय भटकते हुए राही को मुक़ाम
1472
यों चलायी थी छुरी उसने गले पर हँसकर
हम ये समझे कि अदा यह भी कोई प्यार की थी
1473
यों तो अनजान लगता रहे
प्यार भी दिल में जगता रहे
1474
यों तो आने से रहे घर पर हमारे एक दिन
उम्र भर को वे हमारे दिल में आकर रह गये
1475
यों तो आसान नहीं प्यार की धड़कन सुनना
तार दिल के जो मिलें हों तो ये मुश्किल क्या है !
1476
यों तो इस दिल के क़दरदान बहुत कम हैं आज
फिर भी लगता है कि आँखें ये तेरी नम हैं आज
1477
यों तो इस बाग़ में हँसने के लिये आये गुलाब
दिल से उठती हुई आहों की भी मजबूरी थी
1478
यों तो इस बाग़ में हर डाल पे हँसते हैं गुलाब
मुस्कुराने का मगर, हमको इशारा भी नहीं !
1479
यों तो उन नज़रों में है जो अनकहा, समझे हैं हम
फिर भी कुछ है इस समझने के सिवा, समझे हैं हम
1480
यों तो उस दिल में बसी आपकी सूरत ही, गुलाब !
है मगर और भी फूलों से रस्मोराह बहुत
1481
यों तो उसने कभी कुछ भी न कहा मुँह से, मगर
प्यार का रंग उन आँखों में दमकता ही रहा
1482
यों तो कभी उस चितवन से भी प्यार की ख़ुशबू आती थी
पर थी उन्हें मिलने में झिझक क्या, आँखों ही आँखों कर गये घात !
1483
यों तो कहती है अदा आपकी सब कुछ हमसे
पर निगाहों में कोई बात अभी आधी है
1484
यों तो कहाँ नसीब थे दर्शन भी आपके !
कहने को कुछ ग़ज़ल के बहाने चले हैं हम
1485
यों तो किसीके मन से उतारे हुए हैं हम
आयेंगे याद फिर तो भुलाया न जायगा
1486
यों तो खिलते हैं उन्हें देखके आँखों में गुलाब
दिल में काँटा कहीं गड़ता-सा नज़र आता है
1487
यों तो खिलने को नये रोज़ ही खिलते हैं गुलाब
पर ये अंदाज़ किसी और में पाया न गया
1488
यों तो ख़ुशबू का ख़जाना है पँखुरियों में, गुलाब !
क्या पता, इनमें तेरे प्यार की सौग़ात भी हो !
1489
यों तो ख़ुशी के दौर भी आये तेरे बगैर
आँसू निकल ही आये मगर हर ख़ुशी के साथ
1490
यों तो ख़ुशी के दौर भी होते हैं कम नहीं
ऐसा भी कोई पर है दिल में जिसके ग़म नहीं !
1491
यों तो ग़ज़लों के बहाने उनसे मिल लेते हैं हम
पर बहाना चाहिए कुछ तो बहाने के लिये
1492
यों तो गुज़रे हैं इन आँखों से हसीन एक-से-एक
और ही था कोई दिल में जिसे उतार लिया
1493
यों तो चक्कर था सदा पाँव में दीवाने के
नींद क्या ख़ूब है आयी तेरे दर के आगे !
1494
यों तो चरणों के पास जा न सके
खोके होशोहवास देखेंगे
1495
यों तो था हमसे छूट गया कारवाँ का साथ
फिर भी चले ही आयें हैं तुम तक क़दम-क़दम
1496
यों तो दीवाना बताते है हमें लोग, मगर
कुछ तेरे प्यार की राहों की भी मजबूरी थी
1497
यों तो, दुनिया ! तेरी हर चाल समझते हैं हम
ख़ुद ही बाज़ी ये मगर मात हुई जाती है
1498
यों तो दुनिया में कहीं था न पता तेरा, मगर
हमने कुछ प्यार के मारों में तुझको देख लिया
1499
यों तो न रुक सकी कभी कूची तेरी, रँगसाज !
फिर भी कभी ये हाथ ठहर जायँ तो अच्छा
1500
यों तो नज़रें चुरा रहा है कोई
प्यार भी बेरुख़ी से मिलता है
1501
यों तो नज़रों से सदा दूर ही रहता है कोई
आके लगता है गले दिल की एक पुकार के साथ
1502
यों तो निशान पाँव का मिलता है यहीं तक
मानेंगे हम न, साथ हमारा है यहीं तक
1503
यों तो परदे नज़र के रहे
प्यार हम उनसे करके रहे
1504
यों तो बदली हुई राहों की भी मजबूरी थी
कुछ मगर फूल-सी बाँहों की भी मजबूरी थी
1505
यों तो बातें बना रहे हैं ‘गुलाब’
तुम बनाओ तो कोई बात बने
1506
यों तो मंज़िल नहीं इस सफ़र में कोई, फिर भी मंज़िल का धोखा तो होता ही है
कहनेवाले भले ही ये कहते रहें, हमको धोखे में आना नहीं चाहिए
1507
यों तो मंज़िल पे पहुँचने की ख़ुशी है, ऐ दोस्त !
ख़त्म हो जाय सफ़र, हमने ये कब चाहा था !
1508
यों तो मरती ही रही है ज़िंदगी
यह कभी मरने से जी जाती भी है
1509
यों तो मिलता है अजनबी-सा कोई
रंग आँखों का है गुलाबी भी
1510
यों तो रंगों की वो दुनिया ही छोड़ दी हमने
चोट एक प्यार की ताज़ा ही छोड़ दी हमने
1511
यों तो रहती है हरेक फूल की रंगत में बहार
फूल का रंग बहारों से अलग होता है
1512
यों तो राही हैं सभी एक ही मंज़िल के, ‘गुलाब’ !
तेरा इस भीड़ में खपना मगर आसान नहीं
1513
यों तो शोभा बढ़ गयी इस बाग़ की तुझसे, गुलाब !
प्यार की शोख़ी मगर उनको गवारा हो, न हो
1514
यों तो सभी से मेल-मुहब्बत है राह में
हरदम रहा है पर तेरा दर ही निगाह में
1515
यों तो हमसे न कोई बात छिपायी जाती
पर नज़र उनकी नज़र से न मिलायी जाती
1516
यों तो हमेशा मिलते रहे हम, दोनों तरफ़ थी एक-सी उलझन
उसने न रुख़ से परदा उठाया, हमने न छोड़ा हाथ से दामन
1517
यों तो हर चीज से खिंचे हैं हम
क्या करेंगे जो कोई भा ही गयी !
1518
यों तो हर डाल पे इठलाती है फूलों की बरात
हम जिसे ढूँढ़ रहे हैं, वो कली और ही है
1519
यों तो हर बात में आती है हँसी उनको, मगर
जो हमें देखके आयी है अभी, और ही है
1520
यों तो हर राह के पत्थर पे सर को मार लिया
नाम तेरा ही मगर हमने बार-बार लिया
1521
यों तो हरदम नयी है ये महफ़िल, हर घड़ी सुर बदलते हैं इसमें
पर जो हम कह गये आँसुओं से, भूल जाने की बातें नहीं हैं
1522
यों तो हरेक अदा में तेरी हैं खिले गुलाब
एक बेबसी की आह मेरे साथ रही है
1523
यों तो हरेक झोंके से हवा के, प्यार की ख़ुशबू आती थी
दिल ने तुम्हींको एक था माना, मेरे साथी, मेरे मीत !
1524
यों तो हरेक नज़र तेरे तिरछे रही, ‘गुलाब’ !
मिलती रही हैं फिर भी पुतलियाँ किसीकी नम
1525
यों तो हैं ख़ाक के पुतले ही हम, मगर, ऐ दोस्त !
आग से खेल सका कौन है हमारे सिवा !
1526
यों तो हैं हर नज़र में क़यामत की शोख़ियाँ
दिल में उतर गयी जो अदा, और ही कुछ है
1527
यों तो होंठों से कुछ न कहता है
प्यार नज़रों में उसकी रहता है
1528
यों तो होने को हुई उनसे हज़ारों बातें
फिर भी एक बात जो दिल में थी, रही अपनी जगह
1529
यों न झुकती थीं हमें देखके नज़रें उनकी
आज नज़रों में कोई और नज़र आता है
1530
यों न मिलने में शरमाइए
दो घड़ी रुक भी तो जाइए
1531
यों न लहरा मेरी आँखों में सुनहला आँचल
मैं हूँ मदहोश, कहीं बढ़के इसे थाम न लूँ !
1532
यों नज़र से नज़र नहीं मिलती
दिल की धड़कन अगर नहीं मिलती
1533
यों निगाहें थीं शरमा गयीं
मछलियाँ जैसे बल खा गयीं
1534
यों पहुँचने को हज़ारों की नज़र तक पहुँचा
फूल लेकिन न बहारों की नज़र तक पहुँचा
1535
यों ही नहीं अपना सर कोई हर पत्थर से टकराता है
शायद, उसने हर पत्थर में आपका चेहरा देखा होगा
1536
रहूँ होश में जब ये परदा उठाओ
तुम्हींमें तुम्हें देखना चाहता हूँ
1537
रहें जो चुप तो वे देते हैं छेड़– ‘चुप क्यों हैं !’
कहें भी कुछ तो ये कहते हैं—‘आप क्या कहिए !’
1538
रहे न चाँद, यही चाँदनी रहे न रहे
उभर रही है जो रंगत नयी, रहे न रहे
1539
रहे हैं एक-से तेवर न ज़िंदगी के कभी
नहीं हैं चाँद और सूरज भी एक-से ही सदा
1540
रंग अच्छा, गुलाब ! आपका हो
रंग पर यह महज़ मौसमी है
1541
रंग उनका भी बदलता नज़र आयेगा, ‘गुलाब’ !
थोड़ा इन प्यार की आहों में असर आने दो
1542
रंग खुलता है तभी तेरी पँखुरियों का, गुलाब !
जब कोई लेके इन्हें, उनके मुक़ाबिल बैठे
1543
रंग गुलाब का उड़ने लगा है, लौट रही हैं शोख़ हवायें
जिसमें हमें पहचान ले दुनिया, ऐसा भी कोई वेश तो होगा !
1544
रंग चेहरे का तेरे अब भी ये कहता है, गुलाब !
रात भर आँख सितारों से लड़ायी होगी
1545
रंग तो है नया, गुलाब ! मगर
लोग क्यों लेंगे मान, हो भी तो !
1546
रंग देखें गुलाब के भी आज
जिनको दावा है बाग़वानी का
1547
रंग यों तो किसीमें कम न होगा
फूल जो ढूँढ़ते हैं हम, न होगा
1548
रंग लाया है तेरा ग़ज़लों में बँध जाना, गुलाब !
कह रहे हैं वे ‘इन्हें होंठों पे लाना चाहिए’
1549
रंगत किसीकी शोख़ निगाहों की है गुलाब
कह तो रहे हैं बात बड़ी सादगी से हम
1550
राख पर अब उनकी लहरायें समंदर भी तो क्या !
सो गये जो उम्र भर हसरत लिये बरसात की
1551
रात आया था लटें खोले कोई
फूल महका था रातरानी का
1552
रात काँटों पे करवट बदलते कटी, हमको दुनिया ने पलभर न खिलने दिया
आयेंगे कल नये रंग में फिर गुलाब, आज चरणों में उनके बिखर जायँ हम
1553
रात किस तरह यहाँ हमने बितायी होगी !
बात यह आपके जी में भी तो आयी होगी !
1554
रात किसकी लटें खुल गयीं !
चाँदनी साँस रोके रही
1555
रात क्यों सुरमई आँखों में खिल उठे थे गुलाब !
कोई यह जान न पाये, मेरे जाने के बाद
1556
रात गीतों की और ऐसे तार !
सुर मिलाओ तो कोई बात बने
1557
रात भर जंगल-पहाड़ों पर भटकता फिर रहा
है हमीं-सा चाँद भी क़िस्मत का मारा, हो-न-हो !
1558
रात भर रोये हैं कैसे आपकी यादों में हम
पूछ तो लें आँसुओं के टूटते तारों से आज
1559
रात है, चाँद है, तारे हैं, आप हैं, हम हैं
प्यार क्यों आँख चुराता है, कोई बात भी हो !
1560
राह आगे की मिल ही जायेगी
उम्र भर की कोई टहल तो करे
1561
राह किधर भी जाय, मगर
दिल तो पहुँच जाता है वहीं
1562
राह फूलों से सजेगी एक दिन
प्यार की डोली उठेगी एक दिन
1563
राह हमको लिये जाती है कहाँ, कौन कहे !
फिर कभी लौटकर आयेंगे यहाँ, कौन कहे !
1564
राहें थीं अलग तो क्या, हम मिल तो कभी जाते !
कुछ तुमने कहा होता, कुछ हमने कहा होता !
1565
रुक न पाती गुलाब की ख़ुशबू
आड़ काँटे हज़ार करते हैं
1566
रूप की सादगी पे मत जाये
दूध में थोड़ी-सी शराब भी है
1567
रूप की हर चितवन में बसे हम, प्यार की हर धड़कन है हमारी
किसको गुलाब का रंग न भाया ! किसमें नहीं काँटों की है कसकन !
1568
रूप मोहताज है बंदों की नज़र का, लेकिन
बंदगी रूप की मोहताज नहीं होती है
1569
रोकिए भले ही अदाओं को प्यार की
खिल रहे लजाये हुए और सौ गुलाब
1570
रोज़ खिलते हों उन आँखों में गुलाब
दिल में पर ख़ुशबू पहुँच पाती भी है !
1571
रोज़ चलता है कोई यों तो साथ-साथ, मगर
भेद अब तक न खुला, कौन है हमारे सिवा !
1572
रोते ही रोते इन आँखों ने, रात से जगकर भोर किया है
नींद जो आयी, चैन ही आया, कुछ तो हुईं आराम की बातें
1573
रौंदकर पाँवों से कहते–‘खिल न क्यों पाते, गुलाब !’
दंग हम तो आपकी इस बेसुधी पर रह गये
1574
रौंद डाली हैं पँखुरियाँ तेरी पाँवों से, गुलाब !
उसने देखा भी न झुककर कि मुक़ाबिल क्या है