guliver ki chauthi yatra
ओ सत्कवियों की आत्माओ !
अपना चमत्कार दुहराने फिर इस जग में आओ
तुक, रूपक, उपमा अनजानी,
क्या मोहें उक्तियाँ पुरानी
फिर से नव करने निज वाणी
मेरे सुर में गाओ
हंसों-से उड़ जिन शिखरों पर
रोपे थे तुमने ध्वज सुन्दर
पहुँच गया हूँ उनतक चलकर
मैं भी पाँवों-पाँवों
मेरा ह्रदय कमल-सा कोमल
खोल रहा है नित दल पर दल
तुहिन-बिंदु बन इसमें झलमल
अपनी झलक दिखाओ
ओ सत्कवियों की आत्माओ !
अपना चमत्कार दुहराने फिर इस जग में आओ