guliver ki chauthi yatra
किया और अनकिया, मोह-ममता सब की हूँ त्यागे
कर न सका जो इस जीवन में, कर लूँगा वह आगे
अच्छा था पाली न एषणा
बनी रही आतंरिक चेतना
पाकर तुझसे सतत प्रेरणा
नित नव-नव सुर जागे
नाद सुना शब्दों में तेरा
काव्य और क्या देता मेरा!
बढ़ता गया स्रजन का घेरा
भाव मिले मुँहमाँगे
किया और अनकिया, मोह-ममता सब की हूँ त्यागे
कर न सका जो इस जीवन में, कर लूँगा वह आगे