guliver ki chauthi yatra
कृपा ऐसी ही रखना, स्वामी!
जैसे है इस कठपुतली की डोर आज तक थामी
हारें अविश्वास के झोंके
रहूँ न शंकाओं के रोके
मृण्मय भी श्रद्धामय हो के
रहूँ अमर-पथ-गामी
हो भी निस्पृह, निष्क्रिय, निर्गुण
तू यदि दृष्टि न रखता सकरुण
बच पाता नित मोह-जाल बुन
प्रभु! यह मन सुखकामी
यद्यपि जग-दु:ख टलें न टाले
रखना यों ही मुझे सँभाले
रहना सँग-सँग यही कृपा ले
चिर दिन, अन्तर्यामी !
कृपा ऐसी ही रखना, स्वामी!
जैसे है इस कठपुतली की डोर आज तक थामी