har moti me sagar lahre
तूने जो वरदान दिये
सारे रत्न-विभूषण उसकी द्युति ने तुच्छ किये
मत सन्मानें लोग मुझे फूलों के हार लिये
जिसने चखा अमृत, क्या यदि प्याऊ का जल न पिये!
कितना भी अज्ञात रहूँ मैं, अपने ओंठ सिये !
लीक खींचते चले काल पर तो रथ के पहिये
जो पल के श्रृंगार, उन्हें पाकर भी क्या करिये !
भक्त, शारदे ! तेरा तो मरकर भी सदा जिये
तूने जो वरदान दिये
सारे रत्न-विभूषण उसकी द्युति ने तुच्छ किये