har moti me sagar lahre
नया रूप, नव काया
फिर से मुझे नया करने यह कौन अपरिचित आया !
अपनी बाहों में भर लेगा
सुना, मुझे यह नया करेगा !
फिरसे एक नया घर देगा
सब बिधि सजा-सजाया
पर मिलते कर्मानुसार घर
शब्दों में ही खाता चक्कर
श्रेय-मार्ग जो गाया उस पर
आप न मैं चल पाया
फिर भी सोच न कर, मन मेरे !
स्वर अभुक्त भी तुच्छ न तेरे
वह तो तुझसे दृष्टि न फेरे
तूने जिसको गाया
नया रूप, नव काया
फिरसे मुझे नया करने यह कौन अपरिचित आया !