har moti me sagar lahre
अग्नि की पारसमणि छुवाओ प्राण से
यह जीवन पूर्ण करो दहन-दान से
मेरी देह की बाती ज्योति से भरो
निज देवालय का प्रदीप मुझे करो
निशिदिन आलोक-शिखा जले गान से
तम की रग-रग से, पा परस तुम्हारे
सारी रात झलकेंगे नव-नव तारे
दृग संमुख से दूर होगा अँधियाला
जिधर भी पड़ेगी दृष्टि देखूँगा उजाला
छू लूँगा गगन इस व्यथा की तान से
अग्नि की पारसमणि छुवाओ प्राण से
यह जीवन पूर्ण करो दहन-दान से