har moti me sagar lahre
आम पाये बबूल भी बोकर
उलटे देखे नियम प्रकृति के मैंने, तेरा होकर
विष-पात्रों ने अमृत पिलाये
काल-भुजंग हार बन आये
नाव डूबती तट पर लाये
झंझा सिर पर ढोकर
हुई दैव की गणना झूठी
लौटी आप भाग्यश्री रूठी
कविताएँ बन गयीं अनूठी
मणियाँ दीं जो रोकर
आम पाये बबूल भी बोकर
उलटे देखे नियम प्रकृति के मैंने, तेरा होकर