har subah ek taza gulab
कभी दो क़दम, कभी दस क़दम, कभी सौ क़दम भी निकल सके
मेरे साथ उठके चले तो वे, मेरे साथ-साथ न चल सके
तुझे देखे परदा उठाके जो किसी दूसरे की मजाल क्या !
ये तो आईने का कमाल है कि हज़ार रंग बदल सके
तेरे प्यार में है पहुँच गया, मेरा दिल अब ऐसे मुक़ाम पर
कि न बढ़ सके, न ठहर सके, न पलट सके, न निकल सके
मेरी ज़िंदगी है बुझी-बुझी, मेरे दिल का साज़ उदास है
कभी इसको ऐसी खनक तो दे, तेरे घुँघरुओं पे मचल सके
जो खिले थे प्यार के रंग सौ, कभी पँखुरियों में गुलाब की
उन्हें यों हवा ने उड़ा दिया कि पता भी आज न चल सके