hum to gaa kar mukt huye

मोल नहीं लूँगा इन क्षणों का
मन-ही-मन भोगे हुए व्रणों का

अंबर के पार जब चला जाऊँ
तारों की छाया में लहराऊँ
जब तुम्हें दीख भी नहीं पाऊँ
देना तब अर्ध्य अश्रुकणों का

नीली घनमाला को चीर कर
चाँद जब उगेगा सिंधु-तीर पर
आऊँगा चढ़कर मृदु समीर पर
स्पर्श लिये चंदन के वनों का

मोल नहीं लूँगा इन क्षणों का

अगस्त 86