hum to gaa kar mukt huye

हमारी बेला बीत चुकी है
अस्ताचल पर आकर रवि के रथ की ध्वजा झुकी है

कृषक फिरे घर को, हल लेकर
नाविक तट पर नौका खेकर
मेरे पास यही ले-देकर

थी जो कलम, रुकी है

जनता सुमन-हार॒ पहनाती
मुझकों यह कल्पना सताती
क्या न इसी विधि से की जाती

पूजा वलि-पशु की है?

हमारी वेला बीत चुकी है
अस्ताचल पर आकर रवि के रथ को ध्वजा झुकी है

सितंबर 86