jyon ki tyon dhar deeni chadariya

निराशा

अंधों को श्रृंगार दिखाकर क्‍या होगा!
बहरों को संगीत सुनाकर क्‍या होगा!
साग-सब्जियों की लगती हो हाट जहाँ
हीरे, पन्‍ने, लाल सजाकर क्‍या होगा!

सपनों का महल ढह जाय, यही अच्छा है
मन की बात मन में रह जाय, यही अच्छा है
लिख तो रहा हूँ पर पढ़ेगा कौन पुस्तक यह!
काल-सरिता में बह जाय, यही अच्छा है

व्यर्थ सारी कला-निपुणता है
कोई तानों पर सिर न धुनता है
बाग कब का उजड़ चुका, कोयल!
कौन अब तेरे गीत सुनता है!