jyon ki tyon dhar deeni chadariya

शब्द

भाव को प्राण तक ले जाते हैं
रूप को ध्यान तक ले जाते हैं
भक्ति हो सगुण की कि निर्गुण की
शब्द निर्वाण तक ले जाते हैं

शब्द की ही है साधना मेरी
है यही पूजा-अर्चना मेरी
सुख तो जीने का मिल रहा इसमें
अनसुनी भी हो प्रार्थना मेरी

चितू को कभी अगम, अजान तक पहुँचायेंगे
स्वर यह करुणानिधि के कान तक पहुँचायेंगे
है मुझे भरोसा यही, भक्तिभाव के ये शब्द
कभी मुझको भी भगवान तक पहुँचायेंगे