jyon ki tyon dhar deeni chadariya
कृपा
मैंने कविताएँ भी लिखी हों भाँति-भाँति की
यश तो मिला, सेवा पर न की कुछ देश-जाति की
सोचा न था स्वप्न में भी, आपके सभाकवि का
गौरव पा सकूँगा कभी मैं कृतघ्न, पातकी
जाने क्या उगे थे पुण्य, कर कृपा अहैतुकी
कीट से भी रचना करा दी, नाथ! सेतु की
सार्थक हुआ मैं, दी उबार, प्रभु! आपने ही
भाव-रस-हीन कृतियाँ भी मेरी बेतुकी