jyon ki tyon dhar deeni chadariya
घोर दुखमय हो यहाँ जीना भी
जहर का घूँट पड़े पीना भी
मोह पर क्यों न हो मुझे जग से!
साथ कविता है नित-नवीना भी
रूप हो क्रूर काल ने छीना
देह का ठाठ भी रहे झीना
कम न पर यह भी कृपा है प्रभु की
छेड़ लेता हूँ काव्य की वीणा
काव्य पुष्पक-विमान है मेरा
दिल तो अब भी जवान है मेरा
क्या, जो धरती लगा रही है आड़
जब ये कुल आसमान है मेरा!
सब माल भी हो काल ने छीना मुझ से
पाया न छीन दिल का नगीना मुझ से
छुटता ही नहीं दर्द का प्याला दम भर
किस तरह छुटे काव्य-रस पीना मुझसे!