kasturi kundal base
गौतम बुद्ध ने कहा था–
‘तार को न तो इतना ढीला छोड़ो
कि वह बज ही न सके,
और न इतना कसो
कि वह टूट जाय,
उसे इस तरह बजाओ
कि बजाने का मोह ही छूट जाय !’
पर, ओ मेरे मन।
तूने तो सदा इसके विपरीत ही आचरण किया है,
या तो तार को इतना ढीला छोड़ दिया
कि उससे कोई सुर ही नहीं निकला,
या फिर कसते-कसते
उसे तोड़ ही दिया है!