kasturi kundal base

तूने मुझे फूल चुनने का काम सहेजा था,
और मैं पत्ते ही गिनता रह गया,
तूने मुझे सागर की गहराइयाँ थाहने को भेजा था
और मैं लहरों की चंचलता में बह गया,
मैं क्‍या मुँह लेकर तेरे सामने आऊँ।
हीरे कौ खान से बटोकर लाये कंकर-पत्थरों से
तेरा श्रृंगार कैसे सजाऊँ!