kasturi kundal base

सागर-संतरण का यह पहला चरण है।
यद्यपि क्षितिज पर अभी एक घुँधला आवरण है
पर इस गृद्धकूट से मुझे वह सब दिखने लगा है
जो तीर से दिखाई नहीं देता था,
वह सब श्रुति-गोचर होने लगा है,
जो पहले सुनाई नहीं देता था।
इस तरह ऊपर उठते-उठते
शायद एक दिन मैं उस पार की झाँकी भी
देख पाऊँगा,
काल की परिधि लाँघकर,
तेरी बाँहों में समा जाऊँगा।