kasturi kundal base

सूरज की ओर मुँह करके उड़नेवाले पक्षिराज को
नन्हे-नन्हे जुगनू
अपनी चमक से लुभाना चाहते हैं,
सागर की दिशा में दौड़नेवाले महानद को
भेक अपने चरणों से ठहराना चाहते हैं,
कस्तूरी-मृग का मन मोहने को
वन-सुमनों की गंध घेरा डाल रही है,
नभ-वासिनी विद्युत-बाला को
धरती के खर-पात
अपने इंगित पर नचाना चाहते हैं;
मैं इन्हें कैसे समझाऊँ
कि मेरे हृदय में
अब किसी दूसरे के लिए
स्थान ही नहीं बचा है !
मेरी साँस-साँस में
तेरी ही धुन समायी है,
मेरे रोम-रोम में
तेरा ही रूप रचा है!