kavita
नभ में तारे भी न रहे
अपनी सुख-दुख-कथा सुनाता
मैं जिनसे था जी बहलाता
वे आश्वासन देनेवाले चित्र हमारे भी न रहे
किसके आगे रोऊँ-गाऊँ!
किससे रूठूँ, किसे मनाऊँ।!
असफल हृदय, हाय! अब किससे अपने मन की व्यथा कहे !
वे रजनी के साथी भागे
अब पहाड़-सा दिन है आगे
एकाकी हो हृदय तुम्हारा कैसे विषम वियोग सहे!
नभ में तारे भी न रहे
1940