kavita
मेरे विकल तन-मन-प्राण
दूबबाली राह छूटी
कोपलों की छाँह छूटी
दूर उपवन से उड़ाकर ले गया तूफ़ान
प्रश्न का उत्तर न पाया
प्रश्न का उत्तर न आया
देवता जिनको कहा वे बन गये पाषाण
गीत की कड़ियाँ न टूटीं
अश्रु की लड़ियाँ न टूटीं
विश्व क्यों समझे कि कवि का हो चुका अवसान!
मेरे विकल तन-मन-प्राण
1940