kavita

मैं तुम्हें देखता ही रहता

नयनों में अविरल नयन डाल
छू अरुण अधर छवि-किरण-माल
पलकों में पल पल पुलक-जाल

साँसों में सौरभ वन बहता

वन-वन वसंत का अल्हड़पन
कण-कण में इठलाता यौवन
तुम चिर-नवीन, तुम चिर-नूतन

प्रति-रोम विकल, विह्वल कहता

क्षण-बद्ध युगों के चपल चरण
दृग-पुलिनों में अनजान किरण
रे भर जाती अनंत जीवन

मैं मधुर विकलता बन बहता

मैं तुम्हें देखता ही रहता

1940