kavita
आज रे, आधार क्या!
डूबने ही जब चला तब डाँड़ क्या, पतवार क्या!
सिंधु का तूफान देखूँ
या उमड़ते प्राण देखूँ
जब अँधेरा ही रहा, इस पार क्या, उस पार क्या!
तोड़ दूँ नौका पुरानी
क्यों रहे वह भी निशानी
दो दिनों की थी कहानी, जीत क्या फिर हार क्या!
हाय! पी भी तो न पाये
द्वंद में मधु-क्षण गँवाये
जब हुई हाला खतम तब पूछते थे, “प्यार क्या!
आज रे आधार क्या!
1940