kitne jivan kitni baar
कितने बड़े हाथ हैं तेरे!
सदा किये रहते हैं छाया जो मस्तक पर मेरे!
सारी निशि तम की चादर से रहते मुझको घेरे
और प्रात में रवि-कर से कर देते दूर अँधेरे
सोते-जगते, दुख-सुख में, घर-बाहर, साँझ-सवेरे
मेरे चारों ओर निरंतर देते हैं ये फेरे
कितने बड़े हाथ हैं तेरे!
सदा किये रहते हैं छाया जो मस्तक पर मेरे!