kitne jivan kitni baar

तूने क्या खोया, क्‍या पाया!
क्या लेकर अब चला यहाँ से, क्या सँग में था लाया

पहना कभी मुकुट मस्तक पर
कभी फिरा भिक्षा को दर-दर
कितने क्या-क्या रूप बदलकर

जग के सम्मुख आया

जो भी मिला उसे झट छोड़ा
सदा नये सुख के हित दौड़ा
पल में फिर सब से मुँह मोड़ा

ज्यों ही गया बुलाया

तूने क्या खोया, क्‍या पाया!
क्या लेकर अब चला यहाँ से, क्या सँग में था लाया