kitne jivan kitni baar

यदि हम सेवा में सुख पायें
तो फिर लोक-प्रशंसा के हित क्यों मन में अकुलायें!

यदि सेवा के भाव सही हैं
पाये थे जो दिये वही हैं
क्यों प्रतिपल यों घेर रही हैं

पग-पग पर सुरसायें

माना ऋषि-मुनियों को छलता
यश देवों की भी दुर्बलता
क्यों उन पर इसका वश चलता

    जो तेरे कहलायें!

यदि हम सेवा में सुख पायें
तो फिर लोक-प्रशंसा के हित क्यों मन में अकुलायें!