kuchh aur gulab
कितनी भी दूर जाके बसे हों निगाह से
वे पास ही मिले हैं मगर दिल की राह से
कहने को तो हमें भी किया याद आपने
अच्छा था भूलना ही मगर इस निबाह से
मंज़िल हो आख़िरी यही, यह हो नहीं सकता
आगे गयी है राह इस आरामगाह से
देखेंगे हम भी अपने तड़पने का असर आज
पत्थर पिघल गये हैं, सुना, दिल की आह से
काँटों में दिल हमारा तड़पता है ज्यों गुलाब
क्या दुश्मनी थी आपकी इस बेगुनाह से !