kuchh aur gulab
ख़त्म रंगों से भरी रात हुई जाती है
ज़िंदगी भोर की बारात हुई जाती है
उनको फुरसत नहीं मेहँदी के लगाने से उधर
और इधर अपनी मुलाक़ात हुई जाती है
भूलता ही नहीं कहना तेरा नम आँखों से–
‘अब तो रुक जाइए, बरसात हुई जाती है’
यों तो, दुनिया ! तेरी हर चाल समझते हैं हम
ख़ुद ही बाज़ी ये मगर मात हुई जाती है
उनके आगे नहीं मुँह खोल भी पाते हों गुलाब
आँखों-आँखों में ही कुछ बात हुई जाती है