kuchh aur gulab
नहीं एक अपनी व्यथा कह गये
अखिल विश्व की हम कथा कह गये
जो डूबा उसे डूब जाने दिया
‘यही है यहाँ की प्रथा’, कह गये
ये माना कि भूले नहीं तुम हमें
मगर लोग कुछ अन्यथा कह गये
वे देखें, न देखे, सुनें, मत सुनें
हमारा यही ज़ोर था, कह गये
सनद और क्या उनसे पाते, गुलाब!
‘यथा नाम गुण भी तथा’ कह गये