kuchh aur gulab
आओ कुछ देर गले लग लें, ठहर के
होते यहीं से अलग रास्ते सफ़र के
दर्द दिल का तो नहीं बाँट सका कोई
आये जो दोस्त, गये आहें भर-भर के
हमको तूफ़ान के थपेड़ों से डर क्या !
नाव यह रही है सदा बीच में भँवर के
दिल से क्यों उनका एहसास मिट न पाता
खेल प्यार के वे अगर खेल थे नज़र के !
यह भी, गुलाब ! खिलने में कोई खिलना !
मिल न पायीं थी निगाहें भी अभी, सरके !