kuchh aur gulab
फिर मुझे नर्गिसी आँखों की महक पाने दो
फिर बुलाते हैं छलकते हुए पैमाने दो
क्या पता, फिर कभी हम मिल भी सकेंगे कि नहीं !
आज की रात तो आँखों में गुज़र जाने दो
और भी हैं कई मज़बूरियाँ, सँभल ऐ दिल !
क्या हुआ मिल गयीं नज़रें भी जो अनजाने दो !
ज़ब्त होता नहीं, माँझी ! अब उठा दो लंगर
नाव को फिर किसी तूफ़ान से टकराने दो
रंग उनका भी बदलता नज़र आयेगा, गुलाब!
थोड़ा इन प्यार की आहों में असर आने दो