kuchh aur gulab
बेकहे भी न रहा जाय, और क्या कहिए !
प्यार इसको न कहा जाय, और क्या कहिए !
जो भी कहिए, यही लगता है कुछ भी कह न सके
और चुप भी न रहा जाय, और क्या कहिए !
दर्द अपना उन्हें ग़ज़लों में कह रहे हैं गुलाब
जिनसे यह भी न सहा जाय, और क्या कहिए !