kuchh aur gulab
याद मरने पे ही किया तुमने
हमको ऐसा भुला दिया तुमने !
मुँह पे मलकर अबीर होली में
हाथ हरदम को धो लिया तुमने
यह न सोचा, किसीपे क्या गुज़री
दिल लगाया शौक़िया तुमने
दो घड़ी और भी ठहर न सके
जानेवाले ! ये क्या किया तुमने !
ज़िंदगी की किताब ख़त्म हुई
मुड़के देखा न हाशिया तुमने !
हमने माना कि खिल न पाये, गुलाब !
दिल तो ख़ुशबू से भर दिया तुमने