kuchh aur gulab
यों तो इस दिल के क़दरदान बहुत कम हैं आज
फिर भी लगता है कि आँखें ये तेरी नम हैं आज
दो घड़ी मुँह से लगाकर किसीने फ़ेंक दिया
एक टूटे हुए प्याले की तरह हम हैं आज
चूक कुछ तो थी हुई राह की पहचान में ही
दूर हम प्यार की मंज़िल से हर क़दम हैं आज
उनसे मिलकर भी तड़पते हैं उनसे मिलने को
पास जितने भी ज़ियादा हैं उतने कम हैं आज
और ही उनकी निगाहों में खिल रहे हैं गुलाब
उनके होंठों पे छिड़े और ही सरगम हैं आज