nahin viram liya hai

तूने मेरी आन निभायी
लघु तृण ने भी नभ में उड़ लेने की क्षमता पायी

दूर हुए दुःख-संकट सारे
झंझानिल दीपक से हारे
नाव भँवर से बिना सहारे

आप निकलती आयी

उड़ता जो तेरा स्नेहांचल
जहाँ कहीं हो बुद्धि, विभव, बल
वही मुझे निज उर में झलमल

पड़ता रहा दिखायी

पूरे हुए बालहठ मेरे
अब तक तो छविगृह में तेरे
विनय यही,जब चलूँ अँधेरे

विदा न हो दुखदायी

तूने मेरी आन निभायी
लघु तृण ने भी नभ में उड़ लेने की क्षमता पायी