nahin viram liya hai

देख ली तेरी यह फुलवारी
फूल खिले हों पर सँग-सँग है काँटों की भी क्यारी

जहाँ-जहाँ है कुसुमित क्रीड़ा
छिपी दंशनों की है पीड़ा
जब भी उर को सुर में मींड़ा

उठी करुण सिसकारी

माना फल कर्मानुसार है
तू चिर-निस्पृह, निर्विकार है
पर जब मैंने की गुहार है

बिगड़ी क्या न सुधारी!

काँटे हैं यों जाल बिछाये
संभव कब, कोई बच पाये!
दे स्वभक्ति यदि तू न चलाये

शक्ति वृथा है सारी

देख ली तेरी यह फुलवारी
फूल खिले हों पर सँग-सँग है काँटों की भी क्यारी