nahin viram liya hai
नाथ ! जब विदा कराओगे
कब, किससे, किस भाँति, कहाँ डोली उठावाओगे?
रात कि दिन, घर में या बाहर
देख मुझे चलते क्षण कातर
क्या न वचन निज याद दिलाकर
धैर्य बँधाओगे!
कुछ न बिछड़ने का होगा दुःख
स्मृति के द्वार खोलकर सम्मुख
जब तुम नभ-वातायन से झुक
लक दिखाओगे
ढूँढ़ थकूँ जब शून्य-शयन में
क्या ले लोगे चरण-शरण में ?
या लौटाकर इसी भवन में
फिर तड़पाओगे?
नाथ ! जब विदा कराओगे
कब, किससे, किस भाँति, कहाँ डोली उठावाओगे?