nahin viram liya hai
आगे बढ़ जा इस जीवन से
ढूँढ़ उसे जो मुक्त सदा है जीवन और मरण से
तू स्वतन्त्र, परबस भी जीवन
कर्म-लिप्त भी चिर-अलिप्त बन
निज को देख निकलकर दो क्षण
जड़ता के बंधन से
जग सपने-सा मिटता जाता
निभे कहाँ तक इससे नाता!
जो अनंत की झलक दिखाता
जुड़ जा उस चेतन से
जिसने रचे खेल ये सारे
देख, खड़ा, वह बाँह पसारे
कभी ध्यान भी तो कर, प्यारे!
उसका, सच्चे मन से
आगे बढ़ जा इस जीवन से
ढूँढ़ उसे जो मुक्त सदा है जीवन और मरण से