nahin viram liya hai

काल-घन का गर्जन सुन घोर
जग का क्रंदन कभी तुझे भी देता, प्रभु! झकझोर?

लगता, जगदीश्वर! तू नभ पर
बैठा बस सुनता जयध्वनि भर
कभी देखता भी न पलट कर

इस भूतल की ओर

जब जलयान डूबता जाता
यात्री-दल रोता, चिल्लाता
बता –‘न भावी पर चल पाता

क्या तेरा भी जोर’

बुन सुख-दुख के ताने-बाने
हमें यहाँ लाता क्या पाने?
ले जाता किस देश अजाने

बाँध गले में डोर?

काल-घन का गर्जन सुन घोर
जग का क्रंदन कभी तुझे भी देता, प्रभु! झकझोर?