nahin viram liya hai
क्यों तू मरे व्यर्थ चिंता से
जब तेरी अस्मिता जुड़ी है उसकी शाश्वतता से
छिपा निरंतर वह अंतर में
साथ रहेगा शेष प्रहर में
फिर-फिर खो जाने के डर में
क्यों तू भरे उसाँसें
तोड़ घिरे संशय के धागे
बढ़ता जा मिथ्या भय त्यागे
वही छिन्न कर देगा, आगे
जो दिख रहे कुहासे
जब तेरा जीवन न यहाँ था
सोचा भी, –‘तू कौन? कहाँ था?’
जाना भी यदि वही, जहाँ था
हैं दुख-शोक वृथा से
क्यों तू मरे व्यर्थ चिंता से
जब तेरी अस्मिता जुड़ी है उसकी शाश्वतता से