nao sindhu mein chhodi

भीत्ति नहीं है कोई
फिर भी इन रेखाओं में मैंने निज सृष्टि सँजोयी

‘क्या लिखता, कैसे लिखता हूँ
औरों को कैसा दिखता हूँ
प्रतिलिपि हूँ या मौलिकता हूँ’

सारी चिंता खोयी

सोचा कभी न, हूँ किस दल का
युग-युग का या पल-दो-पल का
जब भी स्पर्श लगा है हलका

जागी पीड़ा सोयी

कविता मेरी जीवन-गाथा
गाया जो जग से पाया था–
‘कहाँ-कहाँ टेका था माथा

कब-कब आशा रोयी’

भीत्ति नहीं है कोई
फिर भी इन रेखाओं में मैंने निज सृष्टि सँजोयी