nao sindhu mein chhodi

मैंने क्या कुछ नहीं कहा है!
फिर भी जैसे मन में कुछ कहने को शेष रहा है

पढ़ लूँ जग-रहस्य की भाषा
बुझे रूप की अमर पिपासा
लिये हृदय में झूठी आशा

कितना कष्ट सहा है!

साध प्रेम की हुई न पूरी
रात अधूरी, बात अधूरी
उतनी और बढ़ी है दूरी

जितना अश्रु बहा है

मैंने क्या कुछ नहीं कहा हैं!
फिर भी जैसे मन में कुछ कहने को शेष रहा है