nao sindhu mein chhodi

कहाँ जाइए! किससे कहिए।
जो भी दुख-पीड़ा है मन में, सब मन-ही-मन सहिए

इधर अँधेरा, उधर अँधेरा
सभी ओर से तम ने घेरा
फिर भी जब तक उठे न डेरा

चुप्पी साधे रहिए

होता है जो भी है होना
जल में लहरों का क्‍या रोना!
क्यों अपना धीरज यों खोना!

तिनके पर ही बहिए

कहाँ जाइए ! किससे कहिए!
जो भी दुख-पीड़ा है मन में, सब मन-ही-मन सहिए