nao sindhu mein chhodi
कहाँ तक उड़ती जाय पतंग?
चार हाथ की डोर, तुनुक है कागज़, कच्चे रंग
जहाँ अनंत गगन में अविरत
बनते, मिटते विश्व कोटि-शत
वहाँ बने रहने का शाश्वत्
करे कौन-सा ढंग?
अच्छा यही कि उड़ना छोड़े
कागज़ फाड़े, धागा तोड़े
एक उसीसे नाता जोड़े
सदा रहे जो संग
कहाँ तक उड़ती जाय पतंग?
चार हाथ की डोर, तुनुक है कागज़, कच्चे रंग