nao sindhu mein chhodi

कहाँ तक जायेगी झंकार ?
घर-आँगन, पुर, प्रांत, देश तक या उसके भी पार?

प्रेमी, भक्त, विदग्ध वियोगी
जिसमें भी व्याकुलता होगी
क्या न वही बनकर सहभोगी

छेड़ेगा ये तार

जाति, धर्म, भाषा से उठकर
मानव-मन की हर धड़कन पर
गूँजेगें क्या मेरे ये स्वर

युग-युग इसी प्रकार?

जग तो सच्चा भी है झूठा
जो आँखें मिलते ही रूठा
किन्तु सुना है, काव्य अनूठा

रहता सदाबहार

कहाँ तक जाएगी झंकार
घर-आँगन, पुर, प्रांत, देश तक या उसके भी पार?